लखनऊ विकास प्राधिकरण का ‘फरमान-ए-न्याय’: अब भ्रष्टाचार की शिकायत करना पड़ेगा महंगा

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लखनऊ 3 जून, लखनऊ जहाँ सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिन-रात *“जनसुनवाई को शासन की प्राथमिकता”* घोषित करने में लगे हैं, वहीं राजधानी लखनऊ में उनके ही आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं—वो भी किसी आम बाबू या अफसर द्वारा नहीं, बल्कि खुद लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के उपाध्यक्ष द्वारा।

मुख्यमंत्री हर समीक्षा बैठक में अफसरों को यह घुट्टी पिलाते नहीं थकते कि “IGRS पोर्टल पर केवल शिकायत का निस्तारण नहीं, शिकायतकर्ता की संतुष्टि ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।” जिसको लेकर खबर लिखने के 24 घंटे पहले  मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा X पर पोस्ट किया गया। लेकिन एलडीए उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार ने कुछ ऐसा आदेश पारित कर दिया है, जिससे लगता है कि अब शिकायतकर्ता की ‘संतुष्टि’ का मतलब है—उसे ‘ब्लैकलिस्ट’ कर दो!

जनवरी 2024 से मई 2025 तक मुख्यमंत्री हेल्पलाइन और IGRS पोर्टल पर आईं 2114 शिकायतों की जांच के बाद उपाध्यक्ष साहब को शिकायतकर्ता ही दोषी लग गए। 28 लोगों को काली सूची में डालने का आदेश जारी कर दिया गया। माने अब अगर आप किसी अवैध निर्माण की शिकायत बार-बार करते हैं, तो आप सजायाफ्ता ‘ब्लैकमेलर’ घोषित कर दिए जाएंगे।

कमाल की बात यह कि एक महिला द्वारा की गईं 171 शिकायतों को भी एलडीए ने संदेह की नजर से देखा।
शिकायतों की सच्चाई जानने के बजाय उपाध्यक्ष साहब ने शिकायतकर्ताओं की मंशा पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया। क्या यही है जनता की सुनवाई का नया लोकतांत्रिक तरीका?

*_जिनसे शिकायत होनी थी, वो खुद हो गए न्यायाधीश!_*

अब ये बताइए, जब पूरे लखनऊ में एलडीए के संरक्षण में बिना अनुमति के बहुमंज़िला इमारतें खड़ी हो रही हैं, तो उसमें जनता दोषी कैसे हो गई?
क्या उपाध्यक्ष साहब को नहीं दिखता कि एलडीए के इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों ने नियमों की चूड़ी पहन रखी है?

वर्ष 2022 की वो घटना याद है?
जब एलडीए के ही एक अवर अभियंता ने विभागीय कंप्यूटर से 300 फर्जी शिकायतें खुद ही दर्ज कर दीं और फिर लोगों से पैसे ऐंठ-ऐंठकर शिकायतें ‘सुलझाता’ रहा।
उसे क्या सज़ा मिली? माफ़ी और दोबारा तैनाती!
वाह! भ्रष्टाचारियों को प्रमोशन और शिकायतकर्ताओं को ब्लैकलिस्ट!

*_शिकायतकर्ता बने विलेन, बिल्डर बने ‘ब्रैंड एंबेसडर’_*

इस ‘योजना’ के असली लाभार्थी बिल्डर साहबान हैं, जिनके चेहरे पर मुस्कान और साइट पर काम रात-दिन तेज़ी से चल रहा है।
अब जब कोई उनके निर्माण की शिकायत नहीं कर पाएगा, तो “जो चाहो बना लो, रोकने वाला कोई नहीं” वाला माहौल बन गया है।
शिकायत करने वाला डरेगा, और निर्माणकर्ता मस्त रहेगा।
“एलडीए—बिल्डर्स के सपनों का असली इंजन!”

मुख्यमंत्री पोर्टल: जनसुनवाई या जनसंहार?

मुख्यमंत्री हेल्पलाइन शुरू ही इस नीयत से हुई थी कि आम आदमी बिना डर के अपनी बात शासन तक पहुँचा सके।
लेकिन अब तो लगता है यह पोर्टल, भ्रष्ट अफसरों के लिए ‘डाटा बैंक’ बन गया है—कि कौन-कौन परेशान कर रहा है!
फिर उन शिकायतकर्ताओं की सूची बनाओ, ब्लैकलिस्ट करो और ‘परेशान करने वाला’ घोषित कर दो।
क्या यह मुख्यमंत्री पोर्टल का अपमान नहीं है?

अब सवाल ये है…

1. क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नहीं दिख रहा कि कैसे उनकी जनसुनवाई व्यवस्था को एलडीए में मज़ाक बना दिया गया है?

2. क्या भ्रष्ट इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों पर भी कोई कार्रवाई होगी, या हमेशा की तरह ‘देखा जाएगा’ कहकर फाइल दबा दी जाएगी?

3. क्या अब जनता के पास कोई मंच नहीं बचा, जहाँ वह बेखौफ होकर शिकायत कर सके?

एलडीए उपाध्यक्ष का यह निर्णय न केवल तुगलकी है, बल्कि जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है।
भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही के बजाय शिकायत करने वालों को अपराधी घोषित कर देना, शासन की मंशा और ज़मीन की सच्चाई के बीच की खाई को साफ उजागर करता है।

लखनऊ में अब अवैध निर्माण एक व्यापार नहीं, बल्कि “सरकारी सहयोग से चल रहा उद्योग” बन चुका है।
मुख्यमंत्री कार्यालय को इस प्रकरण का संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि अगर यही हाल रहा तो एक दिन शिकायतकर्ता ही समाप्त हो जाएंगे—और फिर कहने को बचेगा सिर्फ पोर्टल और प्रोमोशन।

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