कम लागत वाले स्टार सेंसर का पहला परीक्षण लॉन्च सफलतापूर्वक किया गया

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ऑफ-द-शेल्फ घटकों से खगोलविदों द्वारा विकसित एक नया निम्न-लागत स्टार सेंसर हाल ही में इसरो द्वारा पीएसएलवी सी-55 पर लॉन्च किया गया था। अपने पहले अंतरिक्ष परीक्षण में पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (पीओईएम) पर स्थापित सेंसर अच्छा निष्पादन कर रहा है और आरंभिक डेटा ने अब इसकी रूपरेखा तथा इसके कार्य को भी सत्यापित कर दिया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) द्वारा विकसित स्टारबेरीसेंस पेलोड 22 अप्रैल को लॉन्च किया गया था। इस अभिनव निम्न-लागत सेंसर, जिसका डिजाइन शीघ्रता से यह गणना करने के लिए किया गया है कि उपग्रह कहां इंगित कर रहा है, इसका पहली बार अंतरिक्ष में परीक्षण किया जा रहा है। संस्थान के स्पेस पेलोड्स ग्रुप के खगोलविदों ने घोषणा की है कि स्टार बेरी सेन्स ने न केवल अंतरिक्ष में कठिन स्थितियों को सहन किया है बल्कि अपेक्षा के अनुरूप कार्य कर रहा है, प्रारंभिक डेटा यह भी दर्शाता है कि यह (प्वाइंटिंग डायरेक्शन) इंगित दिशा की गणना करने में सक्षम है।

किसी भी अंतरिक्ष मिशन के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि किसी भी समय उपग्रह को कहां इंगित किया जा रहा है। जहां ऐसा करने के कई तरीके हैं, एक स्टार सेंसर किसी स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष यान के ओरिएन्टेशन के बारे में सबसे सटीक जानकारी प्रदान करता है। आईआईए में स्पेस पेलोड्स ग्रुप द्वारा डिज़ाइन किया गया स्टार्ट सेंसर अंतरिक्ष में अपने दृश्य के क्षेत्र में सितारों की पहचान करने के द्वारा अंतरिक्ष में अपने प्वाइंटिंग डायरेक्शन को प्राप्त करने में सक्षम है। परिय़ोजना के तकनीकी प्रमुख और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के पीएचडी छात्र भरत चंद्र ने कहा, “इस पेलोड का निर्माण विख्यात मिनी कंप्यूटर स्पचबेरी पी के ईर्द-गिर्द किया गया है और इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेयर को इन-हाउस डिजाइन किया गया था।” उन्होंने कहा, “इस पेलोड का लाभ यह है कि यह किफायती, निर्माण में सरल है और विभिन्न प्रकार के उपग्रहों पर इसे तैनात किया जा सकता है।”

स्टारबैरीसेंस प्रोजेक्ट के प्रधान अन्वेक्षक रेखेश मोहन ने कहा, “स्टारबैरीसेंन्स को इसरो ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (पीओइईएम) पर स्थापित गया था, जो हमारे पेलोड को प्रचालन के लिए एक स्थिर प्लेटफॉर्म प्रदान करता है। पीओईएम इसरो की एक अनोखी पहल है जो वैज्ञानिक प्रयोगों को करने के लिए पीएसएलवी के चौथे चरण का उपयोग एक ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म के रूप में करता है। यह अंतरिक्ष में अल्प अवधि के वैज्ञानिक प्रयोग करने का एक उत्कृष्ट अवसर है।”

इसका प्राथमिक उद्देश्य अंतरिक्ष में इसकी उत्तरजीविता और निष्पादन का आकलन करना था। आईआईए के पूर्व विजिटिंग वैज्ञानिक और स्टारबेरीसेंस टीम के सदस्य बिनुकुमार ने कहा, “उड़ान योग्यता परीक्षण अंतरिक्ष विज्ञान एमजीके मेनन प्रयोगशाला में किया गया था, जो होसकोटे में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के क्रेस्ट परिसर में स्थित है। हमारे वेणु बापू वेधशाला में स्काई इमेजिंग परीक्षण किए गए।” टीम के एक पीएचडी छात्र शुभम घाटुल ने कहा, “लॉन्च के बाद के दिनों में हमने सत्यापित किया है कि स्टारबेरीसेंस अंतरिक्ष में अपेक्षा के अनुरूप निष्पादन कर रहा है।”

स्टारबेरीसेंस का मुख्य दायित्व देखने के क्षेत्र की छवि बनाना, इसके द्वारा देखे जाने वाले सितारों की सही पहचान करना और इंगित दिशा की गणना करना है। टीम की एक पीएचडी छात्रा शुभांगी जैन ने कहा, “प्रारंभिक डेटा के विश्लेषण ने पुष्टि की है कि इमेजिंग उपकरण अपेक्षित रूप से काम करता है, और ऑनबोर्ड सॉफ़्टवेयर पॉइंटिंग दिशा की गणना करने में सक्षम है।” टीम के एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर महेश बाबू ने कहा, “पेलोड से प्राप्त छवियों का उपयोग करते हुए हम अंतरराष्ट्रीय डेटाबेस से डेटा की तुलना करके इसकी सटीकता सत्यापित कर रहे हैं।”

रेखेश मोहन ने कहा, “पीएसएलवी टीम के साथ काम करना पूरी टीम के लिए सीखने का एक बहुत अच्छा अनुभव था। इस सफल उद्यम में इन स्पेस का मार्गदर्शन और सहायता भी  बहुमूल्य थी।” टीम में मार्गरिटा सफोनोवा (डीएसटी महिला-वैज्ञानिक) और जयंत मूर्ति (विज़िटिंग प्रोफेसर) भी शामिल थे।

स्टारबेरीसेंस के इंजीनियरिंग मॉडल के साथ भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में स्पेस पेलोड ग्रुप के दल के सदस्य

स्टारबेरीसेंस से एक सैंपल छवि। यह छवि इन्वर्टेड है और इसलिए सफेद पृष्ठभूमि पर तारे काले दिखाई देते हैं। लाल वृत्त उन सितारों की स्थिति को चिह्नित करते हैं जिनकी तुलना बाहरी डेटाबेस से की गई थी।

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