रविवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ
रविवार से शुरू होंगेशारदीय नवरात्र। चित्रा नक्षत्र, बुधादित्य और योग में इस बार नवरात्र का होगा शुभारंभ। मां दुर्गा इस बार भी हाथी (गज) पर सवार होकर आ रही है। शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को 11:44 मिनट से दोपहर 12:30 तक है। घटस्थापना के शास्रीय आधार तथा उनका आध्यात्मिक परिणाम नवरात्रिके प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं। घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रिकी कालावधिमें ब्रह्मांडमें कार्यरत शक्तितत्त्वका घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना। कार्यरत शक्तितत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं।नवार्णव यंत्रकी स्थापना का शास्त्रीय आधार नवार्णव यंत्र’ देवीके विराजमान होनेके लिए पृथ्वीपर स्थापित आसनका प्रतीक है। नवार्णव यंत्रकी सहायतासे पूजा स्थलपर देवीके नौ रूपों की मारक तरंगों को आकृष्ट करना संभव होता है। इन सभी तरंगोंका यंत्रमें एकत्रीकरण एवं घनीकरण होता है। इस कारण इस आसनको देवीका निर्गुण अधिष्ठान मानते हैं। इस यंत्रद्वारा आवश्यकतानुसार देवी का सगुण रूप ब्रह्मांडमें कार्यरत रहता है । देवीके इस रूपको प्रत्यक्ष कार्यरत तत्त्वका प्रतीक माना जाता है।
नवार्णव यंत्रपर अष्टभुजा देवीकी मूर्ति स्थापित करनेके परिणाम
अष्टभुजा देवी शक्ति तत्त्व का मारक रूप हैं । ‘नवरात्रि’ ज्वलंत तेज तत्त्वरूपी आदि शक्ति के अधिष्ठान का प्रतीक है । अष्टभुजा देवीके हाथोंमें विद्यमान आयुध, उनके प्रत्यक्ष मारक कार्यकी क्रियाशीलताका प्रतीक है । देवीके हाथोंमें ये मारकतत्त्वरूपी आयुध, अष्टदिशाओंके अष्टपालके रूपमें ब्रह्मांडका रक्षण करते हैं । ये आयुध नवरात्रिकी विशिष्ट कालावधिमें ब्रह्मांडमें अनिष्ट शक्तियोंके संचारपर अंकुश भी लगाते हैं एवं उनके कार्यकी गतिको खंडित कर पृथ्वीका रक्षण करते हैं । नवार्णव यंत्रपर देवीकी मूर्तिकी स्थापना, शक्तितत्त्वके इस कार्यको वेग प्रदान करनेमें सहायक है।
नवरात्रिमें अखंड दीपप्रज्वलन का शास्त्रीय आधार
दीप तेज का प्रतीक है एवं नवरात्रिकी कालावधिमें वायुमंडल भी शक्तितत्त्वात्मक तेजकी तरंगोंसे संचारित होता है। इन कार्यरत तेजाधिष्ठित शक्तिकी तरंगोंके वेग एवं कार्य अखंडित होते हैं। अखंड प्रज्वलित दीपकी ज्योतिमें इन तरंगोंको ग्रहण करनेकी क्षमता होती है। नवरात्रि की कालावधिमें अखंड दीप प्रज्वलनके फलस्वरूप दीप की ज्योति की ओर तेजतत्त्वात्मक तरंगें आकृष्ट होती हैं। वास्तुमें इन तरंगोंका सतत प्रक्षेपण होता है। इस प्रक्षेपणसे वास्तुमें तेजका संवर्धन होता है। इस प्रकार अखंड दीपप्रज्वलनका लाभ वास्तुमें रहनेवाले सदस्योंको वर्षभर होता है। इस तेजको वास्तुमें बनाए रखना सदस्योंके भावपर निर्भर करता है।
नवरात्रिमें कुमारिका-पूजनका शास्त्रीय आधार
कुमारिका, अप्रकट शक्ति तत्त्वका प्रतीक है । नवरात्रिमें अन्य दिनोंकी तुलनामें शक्तितत्त्व अधिक मात्रामें कार्यरत रहता है । आदिशक्तिका रूप मानकर भावसहित कुमारिका-पूजन करनेसे कुमारिकामें विद्यमान शक्तितत्त्व जागृत होता है । इससे ब्रह्मांडमें कार्यरत तेजतत्त्वात्मक शक्तिकी तरंगें कुमारिकाकी ओर सहजतासे आकृष्ट होनेमें सहायता मिलती है । पूजकको प्रत्यक्ष चैतन्यके माध्यमसे इन शक्तितत्त्वात्मक तरंगोंका लाभ भी प्राप्त होनेमें सहायता मिलती है । कुमारिकामें संस्कार भी अल्प होते हैं । इस कारण उसके माध्यमसे देवीतत्त्वका अधिकाधिक सगुण लाभ प्राप्त करना संभव होता है । इस प्रकार नवरात्रिके नौ दिन कार्यरत देवीतत्त्वकी तरंगोंका, अपने देहमें संवर्धन करनेके लिए कुमारिका-पूजन कर उसे संतुष्ट किया जाता है ।